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अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर विशेष


२१ फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है।

इस दिन की शुरुआत 1952 में 21 फरवरी के दिन हुई थी,  जिसकी मूल जड़ बांग्ला भाषा आंदोलन को दिया गया है।  कनाडा में रहने वाले बांग्लादेशी के सुझाव पर उस समय बांग्लादेश में हुई नृशंश हत्याओं  को स्मरण करने की शुरूआत मातृभाषा में करने को लेकर  बल दिया गया।  संयुक्त राष्ट्र ने भी २००८ वर्ष अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का वर्ष घोषित किया था।  इस बार 2023 में बहुभाषी शिक्षा के थीम के साथ अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जा रहा है।

मातृभाषा का अर्थ ही है ; जो हम जन्म लेने के समय से ही अपने घर में जिस भाषा में बात करते हैं। अपने त्वरित समाज के साथ जिस भाषा में हम घुल मिल पाते हैं , एक दूसरे को बेहतर तरीके से समझ पाते हैं और बेहतर आत्मीय संबंध स्थापित कर पाते हैं।  देशभर में एक सर्वे के अनुसार 9000 से अधिक मातृभाषाएं हैं,  जिनको बोलने वाले 90% से ज्यादा लोगों की आबादी १ लाख से भी कम है । 

अकेले भारत में 1961 में हुई जनगणना के अनुसार 1652 मातृभाषाएं हैं। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने के पीछे सबसे बड़ा उद्देश्य है कि विश्व भर में सभी तरह के अलग अलग माताओं का सम्मान किया जाना,  उनके सांस्कृतिक उनके विविध सभ्यताओं के बारे में जानना उनका सम्मान किया जाना है। भारत में कोंकणी, मराठी, भोजपुरी, मैथिली, उड़िया, बंगला, राजस्थानी, गुजराती, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयाली समेत कई भाषाएं बोली जाती हैं।


अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के माध्यम से आज की युवा पीढ़ी को भी जागरूक करना बड़ा आवश्यक है कि अपनी बोली, अपनी भाषा में हम तुलनात्मक ढंग से चीजों को कितनी आसानी से समझ सकते हैं । 

वैश्विक भाषा या पराई भाषा में हम कितनी भी अच्छी तरीके से पढ़ाई कर ले और डिग्रियां प्राप्त कर ले लेकिन जो समझ हम अपनी मातृभाषा में प्राप्त कर सकते हैं, एक बेहतर तरीके से  उनको अपनी मातृभाषा में समझकर किया जा सकता है,  वह पराई भाषा में कभी प्राप्त नहीं हो सकता।  इसलिए अपनी अपनी मातृभाषा का हर व्यक्ति के जीवन में एक विशेष महत्व है और हर उस व्यक्ति को अपनी मातृभाषा का सम्मान निश्चित रूप से करना चाहिए।

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