आज देवशयिनी आषाढ़ी एकादशी- भगवान विष्णु होते हैं आज से चार माह तक योगनिद्रा में / जानिए देवशयिनी एकादशी से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी
एकादशी वैसे तो हर महीने में दो बार आती है , इस हिसाब से १ वर्ष में २४ एकादशी होती है।
सभी एकादशियों का अपना विशेष महत्त्व है।
आषाढ़ महीने में आज के दिन की यह एकादशी अति विशेष है जिसे देव शयिनी या हरि शयिनी एकादशी भी कहते हैं।
मान्यता है कि भगवान विष्णु इसी तिथि से चार माह तक अपने धाम क्षीरसागर में शेषनाग पर योगनिद्रा में विश्राम करते हैं और चार माह बाद प्रबोधिनी एकादशी के दिन जगते हैं।
आषाढ़ महीने में शुक्ल पक्ष की ११ वीं तिथि को यह एकादशी आती है और इसलिए इसे आषाढ़ी एकादशी भी कहा जाता है।
इस का महात्म्य सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने अपने मानसपुत्र नारद को सुनाया और देवर्षि नारद ने पांडवों के ज्येष्ठ पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई थी।
देवशयिनी एकादशी से जुड़ी रोचक कथा:
सूर्यवंशी सम्राट मान्धाता के यहां एक बार बड़ा विकट सूखा पड़ने से अकाल की स्थिति आ गई और लोग अनाज के अभाव में भुखमरी तक के शिकार होने लगे।
इस विकराल समस्या से जनता को मुक्त कराने के लिए मान्धाता जंगल मे ब्रह्मा के मानस पुत्र महर्षि अंगिरा के पास गए और उनसे इसका समाधान पूछा। महर्षि अंगिरा ने राजा को देवशयिनी एकादशी के महात्म्य, उपवास की जानकारी दी और निर्देश दिया कि राजा यह व्रत करें।
देवशयिनी एकादशी की तिथि के दिन राजा ने वैसे ही किया जिससे भगवान विष्णु प्रसन्न हुये और कुछ समय बाद राज्य से अकाल और सूखे की स्थिति समाप्त हो गई और सब कुछ पूर्ववत सामान्य हो गया।
सामान्य विधि:
सुबह जल्दी स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें। भगवान विष्णु की फ़ोटो, श्री यंत्र रखें। घी का दिया जलाएं। भगवान को पुष्प अर्पित करें।
भगवान को मिठाई, पंचामृत आदि अर्पित करें।
भगवान विष्णु को तुलसी बहुत प्रिय है, इसलिए उन्हें तुलसी जरूर चढ़ाएं।
इस दिन उपवास रखनेवाले भक्तो को भगवान के सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए।
भगवान विष्णु को भोग लगाने के बाद दिन में एक बार तले हुए आलू, मीठी आलू, फल, दूध इत्यादि ले सकते हैं।
दूसरे दिन यानी द्वादशी की तिथि के दिन तय मुहूर्त में पारण किया जाता है।
तिथि:
शनिवार ९ जुलाई: ४:३९ शाम प्रारम्भ
रविवार १० जुलाई: २:१३ मध्यान्ह समाप्ति
देवशयिनी एकादशी: १० जुलाई ७:२९ शाम
पारण तिथि: ११ जुलाई ५:३१ सुबह से ८:१७ सुबह ।
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