द्रौपदी मुर्मू बनी भाजपा समर्थित राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार/ विपक्ष के १७ पार्टियों ने मिलकर घोषित किया यशवंत सिन्हा का नाम
देश मे राष्ट्रपति के चुनाव की तारीख जैसे जैसे नजदीक आ रही है, इस पर पक्ष और विपक्ष दोनों ओर से सरगर्मी बढ़ती जा रही है।
वर्तमान राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद जी का कार्यकाल २५ जुलाई को समाप्त हो रहा है। १८ जुलाई को राष्ट्रपति पद के लिए मत डाले जाएंगे। रामनाथ देश के मौजूदा १४ वें राष्ट्रपति हैं और उत्तर प्रदेश के पहले राजनेता हैं जो २०१७ में राष्ट्रपति बनाए गए। सक्रिय राजनीति में आने से पहले बतौर अधिवक्ता वह १६ वर्षों तक दिल्ली उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में अपनी सेवा दे चुके हैं।
ममता बनर्जी- मुख्यमंत्री पश्चिम बंगाल जो कि तृणमूल कांग्रेस पार्टी की अध्यक्षा भी हैं , के संयोजन में 17 से अधिक विभिन्न क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पार्टियों ने मिलकर राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए बड़ा संघर्ष किया।
सभी एकमत से पहले राकांपा प्रमुख शरद पवार को इस पद के लिए दावेदारी देना चाहते थे, पर शरद पवार ने साफ इनकार कर दिया।
पूर्व मुख्यमंत्री जम्मू कश्मीर - फारुख अब्दुल्ला ने भी राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में प्रस्ताव स्वीकार नही किया और विपक्ष को यहां भी निराश किया।
गोपालकृष्ण गांधी, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पौत्र के पास जाने पर उन्होंने भी विपक्ष को यह कहकर मना कर दिया कि राष्ट्रपति पूरे देश मे आम सहमति से चुना जाना चाहिए, सबकी सहमति होनी चाहिए।
आज भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा ने प्रेस वार्ता के जरिये द्रौपदी मुर्मू के नाम पर राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की मुहर लगा दी है।
कौन हैं द्रौपदी मुर्मू?
६४ वर्षीय द्रौपदी मुर्मू ओडिशा राज्य में २० जून १९५८ को मयूरभंज इलाके में संतल आदिवासी समाज मे जन्मी और रमा देवी महिला विश्विद्यालय से स्नातक की उपाधि से अलंकृत रही हैं। वह आदिवासी समाज से आती हैं और वर्ष 2000 से सक्रिय राजनीति में हैं। उनके पति श्याम चरण मुर्मू और उनके दो बेटे अब इस दुनिया मे नही हैं। परिवार के नाम पर द्रौपदी जी को एक बेटी ही हैं।
राजनीतिक जीवन:
वर्ष 2000 में वह ओडिशा के रायरंगपुर विधानसभा से विधायक चुनी गईं। २००९ तक वह विधायक रहीं।
बीजू जनता दल- भाजपा की गठबंधन सरकार में वर्ष 2000 से 2004 के बीच वह स्वतंत्र प्रभार राज्य मंत्री के रूप में नवीन पटनायक मंत्रिमंडल में वाणिज्य एवं यातायात मंत्रालय(६ मार्च 2000 से ६ अगस्त 2002), मत्स्य एवम पशुपालन मंत्रालय( ६ अगस्त 2002 से १६ मई 2004 तक) संभाल चुकी हैं।
झारखंड की ९ वीं और पहली ऐसी राज्यपाल रहीं जिसने ५ वर्ष कार्यकाल पूरा किया(१८ मई २०१५ से १२ जुलाई २०२१ तक) वह झारखण्ड की पहली महिला राज्यपाल भी हैं और आदिवासी समाज से पहली महिला हैं जिन्होंने राज्यपाल के पद को सुशोभित किया।
द्रौपदी मुर्मू का जीवन शिक्षा से जुड़ा रहा है। भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की ही भांति वह शिक्षाविद रही हैं। यदि द्रौपदी मुर्मू चुनी जाती हैं तो आदिवासी महिला के रूप में पहली राष्ट्रपति होंगीं।
यशवन्त सिन्हा विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार
यशवन्त सिन्हा वैसे तो राजनीति में काफी चर्चित नाम हैं- भाजपा की वाजपेयी सरकार और चंद्रशेखर सरकार में केंद्रीय वित्त मंत्री रह चुके पटना से यशवन्त सिन्हा अपने ३८साल के लंबे राजनीतिक जीवन मे कई पार्टियों को सेवा दे चुके हैं।
भारतीय प्रशाशनिक अधिकारी( IAS) रहे ८४ वर्षीय श्री सिन्हा ने 1958 में राजनीतिक विज्ञान से स्नातकोत्तर डिग्री हासिल की और पटना विश्विद्यालय में ही अध्यापन करने लगे। १९६० आईएएस बैच के १२ वें रैंक के अधिकारी बने। बतौर आईएएस कभी उपजिलाधिकारी, कभी वाणिज्य मंत्रालय में उप सचिव रहे । वह जर्मनी स्थित इंडियन काउंसलेट के पहले सचिव भी रह चुके हैं।
राजनीतिक सफर- यशवन्त सिन्हा
जयप्रकाश नारायण ,वरिष्ठ राजनेता से प्रभावित होकर सिन्हा ने प्रशाशनिक सेवाओं से इस्तीफा देकर राजनीति की ओर रुख किया और जनता पार्टी(पीपल'स) में शामिल हुए।
वह १९८४ में ही हजारीबाग से लोकसभा चुनाव लड़े जहां तीसरा स्थान मिला और हार गए। १९८६ में जे पी ने उन्हें राष्ट्रीय प्रवक्ता बना दिया और १९८८ में वह राज्यसभा के रास्ते सांसद बने। १९८९ में जनता दल की स्थापना के बाद वह इस पार्टी के राष्ट्रीय महा सचिव बना दिये गए।
जनता पार्टी ने १९८९ के आम चुनाव में १४३ सीट हासिल की और विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में सरकार बनाई। इस सरकार को भाजपा और विपक्षी दलों ने भी सहयोग दिया था।
१९९० में जनता दल ने चंद्रशेखर के नेतृत्व में कांग्रेस के सहयोग से सरकार बनाई और यह वह दौर था जब भारतीय अर्थव्यवस्था बुरे दौर से गुजर रही थी, राजनीतिक अस्थिरता ने स्थिति और खराब कर दी थी। ऐसे वक्त में तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी ने सिन्हा को केंद्रीय वित्त मंत्री बनाया। इस समय सिन्हा राजनीति में नए थे और महज ६वर्ष ही सक्रिय राजनीति में हुए थे।
कालांतर में सिन्हा ने १९९६ में भाजपा का दामन थामा और भाजपा ने उन्हें राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया। सिन्हा, चंद्रशेखर के सहयोगी होने के साथ ही साथ लाल कृष्ण आडवाणी के भी पसंदीदा और करीबी माने जाते रहे।
राजनीतिक गलियारों में खबर यह चली की अटल जी अपने मंत्रिमंडल में उन्हें विदेश मंत्री बनाना चाहते थे पर आडवाणी जी के निर्देश पर वित्त मंत्री बनाया गया।
१९९९ में जब सिर्फ 1 अल्प मत के चलते भाजपा सरकार गिर गई तब आडवाणी जी ने सार्वजनिक सभा मे जो वादा किया था उसे निभाया और भाजपा की अगली सरकार में सिन्हा को वित्त मंत्री बनाया।
२००४ में भाजपा समर्थित राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक गठबंधन( NDA) को आम चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। सिन्हा भी हजारीबाग सीट से हार गए पर बाद में भाजपा ने उन्हें अपना राष्ट्रीय उपाध्यक्ष घोषित किया।
२००९ में सिन्हा फिर हजारीबाग सीट से विजयी हुए पर भाजपा आडवाणी जी के नेतृत्व में चुनाव नही जीत सकी। इसके बाद ही यशवन्त सिन्हा ने पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।
सिन्हा ने २०२१ में तृणमूल कांग्रेस पार्टी जॉइन की और सदस्यता ग्रहण करने के कुछ ही दिन बाद उन्हें पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया।
No comments
Post a Comment