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10 अप्रैल को पूरे देश मे राम नवमी की धूम; नवरात्रि के आखिरी दिन सिद्धि दात्री मां की पूजा और हवन से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियाँ

कल रविवार 10 अप्रैल के दिन हिंदुओं के आराध्य देवता और भगवान विष्णु के 7 वें अवतार माने जाने वाले भगवान राम के जन्म दिवस के उपलक्ष में श्री राम नवमी मनाई जाएगी भगवान राम का जन्म शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को त्रेता युग में हुआ था ।मान्यताओं के अनुसार उनका जन्म मध्यान्ह में हुआ था इसलिए दोपहर में उनकी पूजा-अर्चना करने का विधान है।

          (भगवान राम- माता जानकी)


 इस दिन भगवान राम और माता जानकी की पूजा अर्चना करने से पति-पत्नी के दांपत्य जीवन में सुख शांति और प्रेम का वरदान मिलता है। रामरक्षा स्तोत्र का पाठ करने और भगवान राम की माता जानकी सहित आरती उतारने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। इसी दिन नवरात्रि के 9 वें दिन माता सिद्धिदात्री की भी पूजन का विधान है। इस दिन 9 दिनों तक उपवास करने वाले भक्त हवन करते हैं तत्पश्चात उपवास का पारण करते हैं ।इस दिन माता के नौ रूपों का ध्यान करते हुए 9 कन्याओं को भोजन कराने का भी विधान है; एक बालक को भैरव बाबा के रूप में भोजन की प्रक्रिया में शामिल किया जाता है।


दशमी 11 अप्रैल को मनाई जाएगी। हवन अष्टमी और नवमी दोनों दिन किए जा सकते हैं।कई स्थानों पर दशमी को भी हवन करने का विधान है।

विहिप संचालित मुम्बई के सायन स्थित समर्थ हनुमान टेकड़ी के मुख्य पुजारी श्री अजय मिश्र आचार्य के अनुसार, रामनवमी  10 अप्रैल को सुबह  1 बजकर 24 मिनट से शुरू होकर 11 अप्रैल को सुबह 3 बजकर 15 मिनट तक रहेगी। इस वर्ष नवमी पर सुकर्मा व धृति योग भी बन रहा है।सुकर्मा योग 11 अप्रैल को दोपहर 12 बजकर 4 मिनट तक रहेगा। ये दोनों ही योग किसी भी कार्य के लिए बड़े शुभ माने जाते हैं।

 जानिए हवन से जुड़ी हुई महत्वपूर्ण तिथियां सामग्री और मंत्रोच्चार के बारे में:

मुहूर्त के अनुसार सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4:31 से 5:16 तक रहेगा तत्पश्चात अभिजीत मुहूर्त 11:57 से 12:48 दोपहर में रहेगा, 
विजय मुहूर्त: दोपहर 2:30 से 3:21 तक
गोधूलि मुहूर्त:शाम 6:31 से 6:55 तक
अमृत काल: 11:50 रात्रि से 1:35 तक 

11 अप्रैल के मुहूर्त योग:
रवि पुष्य योग: सम्पूर्ण दिन
सर्वार्थ सिद्धि योग: पूरे दिन
रवि योग: पूरे दिन


 हवन करने वाले भक्तगण सर्वप्रथम ब्रह्म मुहूर्त में स्नान आदि से निवृत होकर स्वस्थ और शख्स कपड़े पहने हो सके तो पुरुष भी धोती पहने तो बेहतर है मां को लाल रंग बहुत प्रिय है इसलिए लाल रंग की चुनरी से मां की प्रतिमा को सजा कर सबसे पहले माता सिद्धिदात्री का पूजन अर्चन करें उसके पश्चात हवन कुंड में आम की लकड़ी लगाकर कपूर के माध्यम से अग्नि प्रज्वलित करें हवन सामग्री के लिए लाए हुए सामान जैसे जौ, अक्षत ,काला तिल , गुड , नवग्रह लकड़ी,  पान के पत्ते,  सुपारी, सूखा नारियल का गोला, इलायची इत्यादि एकत्रित करें; मंत्रोच्चार के माध्यम से निम्न मंत्रों को पढ़ते हुए गाय के घी और हवन सामग्री का संयुक्त रुप से आहुति हवन कुंड में डालें:-

ओम आग्नेय नमः स्वाहा।
ॐ श्री गणेशाय नमः स्वाहा।
ॐ गौरियाय नमः स्वाहा।
ॐ नवग्रहय नमः स्वाहा।
ॐ दुर्गाय नमः स्वाहा।
ॐ महाकालिकाय नमः स्वाहा।
ॐ हनुमते नमः स्वाहा।
ॐ भैरवाय नमः स्वाहा।
 
ओम स्थान देवताभयो नमः स्वाहा ।
ओम ग्राम देवताभयो नमः स्वाहा।
 ओम कुलदेवताभयो नमः स्वाहा।

 ओम गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वर: गुरु साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः स्वाहा।

 ओम भूर भुव: स्वह तत्सवितुर्वरेंयं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् स्वाहा।
ॐ ब्रह्मय नमः स्वाहा।
ॐ विष्णवे नमः स्वाहा।
ॐ शिवाय नमः स्वाहा।


 ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु शशि भूमि सुतो बुधश्च गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रह शान्ति करा भवन्तु स्वाहा।

ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी ,
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते स्वाहा।

        (सिद्धिदात्री मां)

उपरोक्त सभी मंत्रों को पढ़कर आहुति दें। इसके बाद 
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमः स्वाहा
इस मंत्र का 108 बार पाठ करते हुए आहुति दें।

गिनती के लिए 108दाने मूंगफली के निकाल लें और किसी को कहें कि हर आहुति के बाद वह एक एक दाना अलग रखता जाए। इससे 108 की गिनती आसान हो जाएगी।

इसके पश्चात सूखे नारियल में एक छेद बनाकर उसमें खीर पूरी शहद लवंग रख दें। नारीयल में लाल वस्त्र या रक्षासूत्र बांध दें।
हवन कुंड के मध्य में स्थापित करें। मां दुर्गा की प्रतिमा का ध्यान करते हुए निम्न मंत्र कहें-

 ॐ पूर्णमदः पूर्ण मिदम पूर्णात पुण्य मुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेल विशिष्यते स्वाहा।

आरती की थाल में कपूर जलाकर माता महागौरी की आरती करें।सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा चढ़ाएं, सभी को आरती दिखाएं।

इस क्रिया के पश्चात ही कन्याओं को पूजन करके भोजन कराने का विधान है।





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