चार राज्यों में खिला कमल, पंजाब में झाड़ू की आंधी-पंजा हुआ बाहर/ मोदी ने कहा- २०२४ का मार्ग बिल्कुल स्पष्ट- जनादेश सिर्फ राष्ट्र के विकास को।
कल पांचों राज्यों में हुए चुनाव का निर्णायक पल घोषित हो गया और सारा कुछ दूध का दूध और पानी का पानी बनकर जनादेश के रूप में सामने आ ही गया।
उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर और देवभूमि उत्तराखंड में भाजपा की जबर्दस्त वापसी हुई है। प्रचंड जनादेश के बाद एक बार फिर मोदी के नेतृत्व पर जनता ने अपने संतोष और विश्वास की मुहर लगाई है।
पंजाब में हालांकि भाजपा पूर्ववत प्रदशर्न ही कर पाई लेकिन कांग्रेस को सत्ता से बाहर होना पड़ा। पिछली बार यहां आम आदमी पार्टी को २० सीटें मिली थी पर इस बार २०२२ मे ९२ सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और दिल्ली में हुए जादुई करिश्मे की पुनरावृत्ति करती हुई नजर आई। वहीं २०१७ में यहां ७७ सीटों पर जीत दर्जकर सत्ता सुख भोग रही कांग्रेस इस बार मात्र १८ सीटों पर सिमट गई। कांग्रेस के पंजाब अध्यक्ष व ब्रांड नेता, पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिध्धू अपनी सीट भी नही बचा सके।
कुछ महीने पहले दलित वर्ग से सी एम बनाये गए चन्नी भी चुनाव हार गए।
शिरोमणि अकाली दल जो पंजाब की सबसे मजबूत क्षेत्रीय पार्टी मानी जाती है, उसे भी इस बार २०१७ के १५ सीटों के मुकाबले २०२२ में ३ सीटों से संतोष करना पड़ा। ऐसा लगा है मानो झाड़ू सभी पर चल गई। भाजपा को ३ के मुक़ाबले इस बार २ सीटें प्राप्त हुईं।
उत्तर प्रदेश देश का सबसे अधिक जनसांख्यिक राज्य होने के नाते सबसे अधिक विधानसभा सदस्य होने की गरिमा भी रखता है। ४०३ सीटों ओर हुए चुनाव पर पूरे भारत की नजर रही। ऐसी मान्यता है कि लोकसभा चुनाव के सफलता का मार्ग उत्तर प्रदेश से ही निकलता है।
२०१७ में भाजपा ने बड़ा उलटफेर करते हुये ३१२ सीटों के साथ प्रचंड बहुमत दर्ज कराया था और विरोधियों को सदमे में पहुंचा दिया था। योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने , और डेढ़ साल में ही लोकसभा चुनाव का दबाव उन पर आ गया। २०१९ लोकसभा के चुनाव में यूपी ने उम्मीद से उम्दा -बेहतर प्रदर्शन किया था। अब पांच साल पूरे कर चुकी योगी सरकार ने २०२२ में उसी तरह फिर से सत्ता में वापसी कर ली है। भाजपा २५४ विधानसभा सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत का जादुई आंकड़ा २०२ को पार कर लिया है । सहयोगी दलों में निषाद पार्टी को ६ सीटें मिली और अपना दल को १२ सीटें प्राप्त हुईं। उल्लेखनीय है कि निषाद पार्टी को २०१७ में सिर्फ एक सीट ही मिली थी।
ऐसा ३७ सालों बाद हुआ है जब यूपी की सत्ता मे सत्तासीन पार्टी को दुबारा मौका मिला हो।
इसके पहले १९९५ में नारायण दत्त तिवारी की सरकार में ही ऐसा संयोग आया था।
प्रमुख विरोधी पार्टी सपा ने हालांकि २०१७ के मुकाबले दोगुना पाई लेकिन सत्ता नही मिल सकी। २०१७ में भाजपा की आंधी के सामने सपा मात्र ४७ की दो अंकों में सिमट गई थी। २०२२ में ११२ सदस्य चुने गए हैं।
सपा अपने गढ़ आजमगढ़ में सभी विधानसभा सीटें अपने नाम करने में कामयाब रही। इस बार ऐसा इसलिए भी हो सका क्यों कि अल्पसंख्यक समुदाय विशेषतः मुसलमान वर्ग का ध्रुवीकरण नही हुआ। ओवैसी ने रैलियां की, बड़े स्वर्णिम सपने दिखाए, १०० सीटों पर चुनाव भी लड़ लेकिन कुछ कर नही पाए। अल्पसंख्यक वर्ग अखिलेश यादव के साथ जुड़ा रहा।
क्या कहा पी एम मोदी ने -
कल प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रीय कार्यालय दिल्ली में विजय के बाद सभा मे कहा कि पांच राज्यों के चुनाव परिणाम राष्ट्रीय चुनाव में मध्य अवधि की तरह माने जाते हैं। "२०१७ में जब हमे यूपी की सत्ता मिली तब कई जानकारों ने कहा था कि २०१९ का मार्ग स्पष्ट हो चुका है। मुझे उम्मीद है कि वे जानकार अब भी यही कहेंगे कि २०२४ का रास्ता साफ हो गया है। जनता जनार्दन ने उनके प्रतिनिधित्व, काम करने की क्षमता, कुशलता और गुड गवर्नेंस को स्वीकारा है। नीति, नियत और निर्णय जैसे तत्वों पर बनी आम सहमति और जन विश्वास ही इस जीत का आधार है।"
उत्तराखंड की ७० विधानसभा सीटों में भाजपा ने २०१७ में मिले ५७ सीटों के मुकाबले २०२२ में ४७ सीटें प्राप्त की हैं। कांग्रेस को यहां ११ के बजाय १९ सीटें मिली और बढ़त मिली पर सत्ता से बहुत दूर है।
६० सीटों वाली मणिपुर में भाजपा को आधी से ज्यादा सीटें मिल गईं। २०१७ में मिले २१ सीटों के मुक़ाबके इस बार ३२ सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया।
गोवा में ४० सीटों की विधानसभा है। यहां भाजपा तीसरी बार सरकार बनाने जा रही हैं। इसके पहले डॉ प्रमोद सावंत सीएम थे ,वह इस बार फिर जीते हैं। भाजपा को ४० में से २० सीटें मिली हैं और सरकार बनाने वाली है। केंद्रीय रक्षा मंत्री दिवंगत मनोहर पर्रिकर यहीं से मुख्यमंत्री थे।
सबसे अहम यूपी का चुनाव रहा। यहां चुनाव तारीख घोषित होने के बाद ही भाजपा के सामने चुनौतियां आने लगीं। भाजपा छोड़कर जानेवाले नेताओं का तांता लग गया और एक समय ऐसा आया जब खुद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मीडिया में कह दिया था कि अब वह किसी भी नेता को अपनी पार्टी में नही लेंगे।
योगी सरकार में मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान, धरम सिंह सैनी ने भाजपा छोड़ी और सपा जॉइन की। यह बीजेपी के लिए नाजुक वक्त था और गृहमंत्री अमित शाह ने यूपी में दस्तक दी और अन्य पार्टी नेताओं को सूत्र में लाना शुरू कर दिया।
स्वामी मौर्य के झटके से निपटने के लिए कांग्रेस से आरपीएन सिंह को लिया गया। नतीजा यह हुआ कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपनी सीट पडरौना को छोड़कर सपा की टिकट पर फाजिलनगर से चुनाव लड़ा पर मुंह की खानी पड़ी, साख नही बचा सके।
भाजपा ने सूक्ष्म निरीक्षण कर ऐसे क्षेत्र चिन्हित किये जहां नुकसान हो सकता था और इसलिए स्टार नेता खुद मैदान में उतरे थे। गोरखपुर में महंत योगी आदित्यनाथ ने मोर्चा खुद संभाला और नतीजा स्पष्ट है, सारी ९ सीटें भाजपा की झोली में आ गईं।
अंतिम चरण के प्रचार में बनारस जो कि मोदी जी का संसदीय क्षेत्र है, वहां वह रुक कर रोड शो किये, सभा की। बूथ स्तर के २० हजार कार्यकर्ताओं से डिजिटल माध्यम से संवाद किया और नई ऊर्जा फूंक दी।
जौनपुर में ४ विधानसभा सीटों पर भाजपा:
बदलापुर से रमेशचंद्र मिश्र, शाहगंज से रमेश सिंह, मड़ियाहूं से डॉ आर के पटेल, जौनपुर से गिरीश चन्द्र यादव को विजय मिली।
बदलापुर से रमेश चंद्र मिश्र ने निकटतम प्रतिद्वंदी सपा के ओमप्रकाश उर्फ बाबा दुबे को दुबारा हराकर दूसरी बार विधायकी जीती है।
उल्लेखनीय है कि बदलापुर का गठन गड़वारा विधानसभा से काटकर २०१२में हुआ और तब से तीन बार यहां चुनाव हो चुके हैं। सपा के बाबा दुबे 2012 में यहां विधायक बने थे और उनके बेटे को राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया था।
२०१७ में माहौल बदल गया और बाबा दुबे तीसरे स्थान पर पहुंच गए। रमेश चन्द्र मिश्र ने दूसरे स्थान पर रहे बसपा के ललई यादव को लगभग 2372 मतांतर से हराया था।
इस बार सभी राउंड में भाजपा के रमेश मिश्र ने बढ़त बनाये रखा और लगभग २२ हजार वोट पहले की अपेक्षा अधिक मिले। २०१७ में रमेश चन्द्र मिश्र को ६०२३७ मत मिले थे।
रमेश मिश्र ने स्थानीय जनता को भरोसा दिलाया है कि उनके कार्यकाल में जो विकास यात्रा चली है ,जो भी काम अधूरे हैं, वह पूरे किए जाएंगे। बदलापुर को जिला बनाने के लिए आवाज़ उठाएंगे।
जौनपुर में ९ में से दो सीटें भाजपा को तो २ सीटें भाजपा गठबंधन को मिली, सपा ४ सीटों ओर विजयी रही। एक अन्य पर सपा समर्थित पार्टी को जीत मिली। केराकत से सपा के तूफानी सरोज ने भाजपा के दिनेश चौधरी को हराया।
शाहगंज से भाजपा समर्थित निषाद पार्टी के रमेश सिंह ने पूर्व मंत्री और चार बार के विधायक रहे दिग्गज ललई उर्फ शैलेन्द्र यादव को रोमांचक तरीके से हराकर जीत दर्ज की।
मुंगराबादशाहपुर से भाजपा प्रत्याशी अजय शंकर दुबे उर्फ अज्जू भैया को सपा के पंकज पटेल से हारना पड़ा।
जफराबाद से सपा समर्थित सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के जगदीष नारायण राय ने भाजपा के हरेंद्र प्रसाद सिंह को हराकर जीत दर्ज की। वह पूर्व मंत्री भी रहे हैं।
मड़ियाहूं से भाजपा समर्थित अपना दल के आर के पटेल ने सपा के सुषमा पटेल को हराया। सुषमा पटेल पहले मुंगराबादशाहपुर से विधायिका थीं।
मछली शहर से सपा की डॉ रागिनी सोनकर जीती हैं।
जातिगत समीकरण को समान स्तर पर रखने की कवायद भी उच्च स्तर पर हुई। ७५ जिलों में जाती विशेष को ध्यान में रखकर कम्पैनिंग हुई। ओबीसी समाज मे २२ अलग अलग जातियों को चिन्हित कर अक्टूबर से ही तैयारी शुरू कर दी गई थी।
जैसे जैसे प्रचार के दिन समाप्ति की ओर बढ़ रहे थे वैसे वैसे पार्टी के कंपैन आफिस भी मेरठ से लखनऊ, फिर गोरखपुर ,फिर बनारस में बदलते रहे।
सारांश में भाजपा ने दो तिहाई बहुमत से विजय हासिल की है।
आज राज्य के शीर्ष नेता योगी आदित्यनाथ, स्वतंत्र देव सिंह, महासचिव सुनील बंसल दिल्ली में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ अगले कार्यक्रम की रूपरेखा पर विचार विमर्श के लिए चर्चा करनेवाले हैं।
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