अनिल देशमुख पर एक और आरोप- गृहमंत्री पद पर रहते हुए पिछले वर्ष 50 IAS अफसरों का तबादला अवैध तरीक़े से- सीबीआई डायरेक्टर सुबोध जायसवाल
सितम्बर २०२० में महाराष्ट्र विकास आघाडी के तत्वावधान में जब अनिल देशमुख राकांपा के वरिष्ठ नेता और राज्य के गृह मंत्री थे उस वक्त पुलिस प्रशासन भी उनके ही पोर्टफोलियो में था। पोलिस इस्टेब्लिशमेंट बोर्ड की मीटिंग में यह निर्णय लिया गया और पूरे राज्य में आईएएस अधिकारी जो पुलिस उपायुक्त या उसके ऊपर के पद के थे ऐसे 50 लोगों का तबादला कर दिया गया।
अब सीबीआई के चीफ डायरेक्टर सुबोध कुमार जायसवाल ने यह कहा है कि इस जांच में पता लगा है कि उस वक्त पुलिस स्थापत्य बोर्ड की मीटिंग हुई ही नहीं थी। सुबोध कुमार जयसवाल उस वक्त महाराष्ट्र के डीजीपी यानी डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस, उससे पहले मुंबई के पुलिस कमिश्नर रह चुके हैं। सीबीआई जांच पहले से ही अनिल देशमुख पर चल रही है और सीबीआई इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं कि उन पर लगाए गए हफ्ता वसूली करप्शन के आरोप किस हद तक सही है।
(बाएं से- सुबोध जायसवाल- सीबीआई निदेशक, रश्मि शुक्ला- पूर्व इंटेलिजेंस विभाग प्रमुख, अनिल देशमुख- पूर्व राज्य गृहमंत्री)
आपको बता दें एंटीलिया में जिलेटिन विस्फोटक युक्त कार रखे जाने के बाद सचिन वजे की गिरफ्तारी होना , उसके बाद शक के घेरे में आने के बाद पुलिस आयुक्त पद से हटाया जाना और होमगार्ड विभाग में भेजा जाना, सचिन वजे का मनसुख हीरन हत्याकांड में संलिप्त पाया जाना, गिरफ्तार होना ,क्राइम विभाग के पद से सस्पेंड किया जाना, जिसके बाद तत्कालीन पुलिस आयुक्त परमवीर सिंह द्वारा मुख्यमंत्री को अनिल देशमुख पर आरोप लगाते हुए पत्र लिखा जाना, और उसके बाद मुंबई उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में परमवीर का जाना यह सारे घटनाक्रम इस तरह चले की मुंबई उच्च न्यायालय को भी जजमेंट देना पड़ा की अनिल देशमुख के भी लापरवाही सामने आई है ,उन पर लगाए भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच की जानी चाहिए। इसके बाद पद की गरिमा को देखते हुए और राकांपा प्रमुख शरद पवार की सलाह पर अनिल देशमुख ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया ।
आपको यह भी बता दें कि प्रवर्तन निदेशालय उन्हें अब तक 5 बार कार्यालय में उपस्थित रहने के लिए समन जारी कर चुका है ;लेकिन अनिल देशमुख जी एक बार भी उपस्थित नहीं हुए हैं/ अब यह नया मामला जिसमें 50 पुलिस उपायुक्त या उसके ऊपर के पद के लोगों का तबादला राज्य भर में सितंबर 2020 में किया गया था ।जिसके लिए किसी तरह की पुलिस स्थापत्य बोर्ड की मीटिंग नहीं हुई थी।
यह जानकारी सुबोध जायसवाल जी ने वर्तमान में च रही जांच में अपना स्टेटमेंट दर्ज कराया है।
उनके अतिरिक्त श्रीमती रश्मी शुक्ला- पूर्व अतिदक्षता विभाग प्रमुख(चीफ- इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट) ने भी अपना स्टेटमेंट सीबीई को दर्ज कराया है। सीबीआई यह जांचना चाहती है कि क्या इन तबादलों में पैसे का लेन देन भी हुआ है।
क्या जरूरी है अधिकारियों के तबादले से पूर्व पी ई बी (पोलिस एस्टेब्लिशमेंट बोर्ड) की मीटिंग?
महाराष्ट्र पुलिस एक्ट एवम महाराष्ट्र गजट-२०१४ के अनुसार, पी ई बी की मीटिंग ऐसे हाई प्रोफाइल पोस्ट के अधिकारियों के ट्रांसफर होने से पहले होनी अत्यंत जरूरी है। इस मीटिंग की अध्यक्षता गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव की होनी चाहिए।उस समय सीताराम कुंटे अतिरिक्त मुख्य सचिव(गृह) थे। वाइस चेयरपर्सन के रूप में पुलिस महानिदेशक यानी डीजीपी और इंसेक्टर जनरल को होना चाहिए था।सुबोध जी स्वयं डीजीपी थे पर ऐसी कोई मीटिंग हुई ही नही और तबादले कर दिए गए।
पी ई बी की मीटिंग में मुम्बई पुलिस आयुक्त, एन्टी करप्शन ब्यूरो के डीजीपी , अतिरिक्त पुलिसमहानिदेशक जैसे अधिकारी भी सदस्य के रूप में मौजूद रहते हैं।
क्या कहना है राज्य सरकार का ?
इसके बाद अपनी जांच रिपोर्ट लगाकर सीबीआई ने मुम्बई उच्च न्यायालय को तलब किया ,जिस पर राज्य सरकार ने एफिडेविट देकर कहा कि अनिल देशमुख से जुड़ी जांच में अधिकारियों के तबादले के कोई संबंध नही है और सीबीआई जांच के अतिरिक्त जांच कर रही है। सीबीआई वह दस्तावेज़ क्यों मांग रही है जिसका उसकी वर्तमान जांच से संबंध ही नही है। सीबीआई अपने अधिकार का दुरुपयोग कर रही है।
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