विजयादशमी पर्व आज- महिषासुर मर्दिनी और भगवान राम के रावण पर विजय के प्रतीक का है यह महान पर्व
अच्छाई की बुराई पर विजय, असत्य पर सत्य की जीत, दुराचार पर सदाचार की विजय, कुनीति पर सुनीति की जीत, यह सभी आज के महान पर्व विजयादशमी के लिए कहे जाते हैं ।
विजयादशमी या दशहरा तीन विविध कारणों की वजह से प्रसिद्ध है । आज के ही दिन माता भगवती ने महिषासुर नामक महान व्यक्ति का संघार किया था और देवताओं को समस्त जनमानस को के घोर अत्याचार से मुक्त किया। इसलिए उन्हें महिषासुर मर्दिनी कहा जाता है ।
(महिषासुर मर्दिनी अवतार)
आज के ही दिन भगवान राम ने दुराचारी लंकेश रावण कर विनाश किया था। सर्वविदित है माता सीता के हरण के बाद लंकापति रावण और उसकी विशाल सेना के साथ मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम और उनकी वाणी सेना के बीच भयंकर युद्ध हुआ था। अतिकाय ,मेघनाद, कुंभकरण ,खर, दूषण, त्रिसिरा समेत कई महान असुर मारे गए थे । भगवान राम के रावण पर विजय के प्रतीक स्वरूप विजयादशमी यानी दशहरा का पर्व मनाया जाता है।
(भगवान श्रीराम , दुराचारी रावण का अंत करते हुुुए)
आज के दिन की जाती है शमी वृक्ष की पूजा
शमी वृक्ष में अग्नि तत्व अधिक है, यह तेजस्विता और दृढ़ता का प्रतीकस्वरूप है। वह अग्नि तत्व हमारे अंदर भी हो इसलिए इस वृक्ष की पूजा विशेषकर छत्रिय वर्ग के द्वारा विजयादशमी के दिन प्रदोष काल मे की जाती है।
इतिहास के अनुसार पांडवों ने कौरवों के साथ युद्ध के पहले अपने सभी अस्त्र और शस्त्र शमी वृक्ष में छुपा दिए थे ।और उन्होंने उन अवसरों को निकाल कर आज के ही दिन पूजा की थी जिससे उन्हें विजय मिली थी ।इसलिए भी विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है।
आज के दिन शमी के पत्ते दान करने की भी परंपरा है।
(शमी वृक्ष के पत्ते)
कन्याओं को पूजन और भोजन कराने का है विधान
नवमी और अष्टमी का समापन करने वाले भक्तों के लिए कन्याओं को देवी मान कर पूजन करने और उन्हें भोजन कराने का विधान है । भोजन कराने के पश्चात यदि उन्हें हरे रंग का वस्त्र, कपड़ा ,चूड़ी दान की जाय तो आपके जीवन में सुख शांति और वैभव सहायता से मिल सकते हैं और माता की कृपा है शीघ्र ही प्राप्त की जा सकती है।
कब है मुहूर्त
अष्टमी और नवमी तिथि कल सुबह शनिवार से ही शुरू है जबकि नवमी का समापन आज रविवार के दिन 11:14 पर होगा। यानी इस समय के बाद विजयादशमी तिथि लग जाएगी ।11:14 से पहले कन्याओं को भोजन करा दें और अपने व्रत का पारण करें। शनिवार के ही दिन अष्टमी और नवमी दोनों व्रत धारी हवन और कन्या पूजन भी कर सकते हैं।
क्या है विधान
भक्त चाहें तो योग्य ब्राह्मण द्वारा या स्वयं भी हवन सम्पन्न कर सकते हैं ।जिनके लिए उचित मंत्रो और विधिपूर्वक सम्पन्न प्रक्रिया का ज्ञान जरूरी है। हवन सामग्री, पंचामृत, पुष्प, लाल वस्त्र, चंदन, कुंकुम, फल, प्रसाद, गंगाजल , नारियल, रक्षासूत्र इत्यादि आवश्यक वस्तुएं हैं।
हवन के लिए माता के बीजमंत्र " ॐ एन ह्रीं क्लिं चामुण्डायै विच्चै" का उच्चारण किया जाता है।
हवन के समापन के बाद माता की आरती करें। पूर्ण प्रक्रिया में कोई त्रुटि रह सकती है, इसलिए क्षमा याचना कर लें।
No comments
Post a Comment