0 ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनामिक कोऑपरेशन डेवलपमेंट के अनुसार देश में 1000 व्यक्तियों पर सिर्फ 0.5 बेड अस्पताल में मौजूद। आर्थिक राजधानी मुंबई में सबसे ज्यादा करो ना का कहर महाराष्ट्र में आंकड़ा 50000 के पार पहुंचा सरकारी अस्पतालों के अलावा प्राइवेट अस्पतालों में भी जगह खाली नहीं -ब्रिच कैंडी, लीलावती ,मुंबई हॉस्पिटल जैसे नामी अस्पताल भी बेड उपलब्ध कराने में असफल । जून अंत तक स्थिति और बदतर होने की संभावना। - Khabre Mumbai

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ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनामिक कोऑपरेशन डेवलपमेंट के अनुसार देश में 1000 व्यक्तियों पर सिर्फ 0.5 बेड अस्पताल में मौजूद। आर्थिक राजधानी मुंबई में सबसे ज्यादा करो ना का कहर महाराष्ट्र में आंकड़ा 50000 के पार पहुंचा सरकारी अस्पतालों के अलावा प्राइवेट अस्पतालों में भी जगह खाली नहीं -ब्रिच कैंडी, लीलावती ,मुंबई हॉस्पिटल जैसे नामी अस्पताल भी बेड उपलब्ध कराने में असफल । जून अंत तक स्थिति और बदतर होने की संभावना।

आर्थिक राजधानी मुंबई में कोरोनावायरस थमने का नाम नहीं ले रहा है । 25 मार्च से राष्ट्रव्यापी संचार बंदी होने के बावजूद आज 60 दिन बीत गए हैं ।  हालांकि राज्य में इससे पहले ही लॉक डाउन लागू हो चुका था। कोविड-19 का विकास दर   6.6% हो चुका है। महाराष्ट्र देश में सबसे ज्यादा कोविड-19 संक्रमित मरीजों के आंकड़ों के अनुसार 50,000 से ज्यादा की संख्या प्राप्त कर चुका है । आर्थिक राजधानी और बड़े-बड़े उद्योगों का केंद्र बिंदु माना जाने वाला मुंबई शहर आज वीरान  सा हो गया  हैं ।

 यहां महानगरपालिका के अंदर  काम करने वाले कई बड़े अस्पताल जैसे सायन अस्पताल, किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल, नायर अस्पताल ,भाभा हॉस्पिटल ,देसाई हॉस्पिटल ,कामा अस्पताल, कई बड़े प्राइवेट अस्पताल जैसे सेवन हिल्स ब्रिच कैंडी, फॉर्टिस हेल्थ केयर, सोमैया अस्पताल , गैलेक्सी अस्पताल, भाटिया अस्पताल , एचएन रिलायंस हॉस्पिटल , ब्रम्हाकुमारी अस्पताल , मुंबई हॉस्पिटल, गोकुलदास तेजपाल अस्पताल जैसे कई बड़े हॉस्पिटल मौजूद हैं। करोना से प्रभावित मरीजों की संख्या बहुत ज्यादा हो जाने की वजह से आज लगभग सभी अस्पतालों में एडमिशन लेना टेढ़ी खीर बन चुका है।

 ओ ई सी डी संस्थान के सर्वे के अनुसार देश में प्रति हजार व्यक्तियों पर पॉइंट फाइव 0.5 ब्रेड ही उपलब्ध है 2009 में यह आंकड़ा 0.4 था भारत विश्व का दूसरा जनसंख्या की दृष्टि में सबसे बड़ा देश है चीन में या आंकड़ा 4.3 है और अमेरिका में यही आंकड़ा प्रति हजार व्यक्तियों पर 2.8 है।

देश में ग्रामीण इलाकों में लोग सबसे ज्यादा अब प्राइवेट अस्पतालों पर भरोसा कर रहे हैं क्योंकि सरकारी अस्पतालों की स्थिति खस्ताहाल है; इंफ्रास्ट्रक्चर की बेहद कमी है।

 पिछले 20 सालों में बढ़ रहे निजी हेल्थ केयर सेक्टर की वजह से इनका शेर मेडिकल सर्विसेस में 55% हो चुका है ।शहरों में भी बहुत बड़े प्राइवेट अस्पताल बन चुके हैं लेकिन उनकी सुविधाओं का लाभ सिर्फ अमीर लोग ही ले पा रहे हैं क्योंकि इलाज के नाम पर मंहगे चार्जेस चुका पाना गरीब और मध्यम वर्ग के बस में बिल्कुल नहीं है।

मनपा के नए निर्देशन के अनुसार अधिकारियों को यह लिखित आदेश जारी किया गया है ।मुंबई शहर के अंदर प्राइवेट अस्पतालों से 100 बेड मनपा के अंदर लिए जाएं ताकि गरीब और मध्यम वर्ग का इलाज आसानी से किया जा सके। यह सर्कुलर सभी 24 वार्डों के लिए जारी किया गया है। मुंबई शहर में दो करोड़ से ज्यादा लोग रहते हैं।
2019 में उपलब्ध अस्पतालों के डाटा के अनुसार भारत में 714000 बेड उपलब्ध है यह आंकड़ा 2009 में 540000 था।

बढ़ती हुई जनसंख्या के अनुपात में अस्पतालों में बेड की संख्या बहुत ही सीमित मात्रा में बढ़ी है। जिससे यह समझ में आता है कि मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम बहुत ही स्लो हुआ है। और अब कोविड-19 महामारी ने यह साबित भी कर दिया है। जब मुंबई जैसे शंघाई बनने जा रहे शहर में ऐसी स्थिति है तो बाकी देश के ग्रामीण इलाकों की कल्पना भयावह है।

देश का लगभग हर पांचवा मरीज आज आर्थिक राजधानी मुंबई में है ।
जहां पारीक परिवार ने 5 घंटे से ज्यादा मशक्कत करने के बाद अस्पताल में अपने परिजन के लिए बेड नहीं प्राप्त कर सके। और जब बॉम्बे हॉस्पिटल ने जगह देने की हामी भरी ,तब तक पारीख परिवार में अपने 92 वर्षीय मधुमेह से संक्रमित व्यक्ति को खो दिया। जांच में पता चला कि उन्हें भी कोविड-19 ने अपनी गिरफ्त में ले लिया था।

मुंबई मनपा ने तेजी से कमर कसते हुए नए आयुक्त इकबाल सिंह चहल के नेतृत्व में बांद्रा के एमएमआरडीए ग्राउंड को 1026 बेड का अस्पताल बना दिया है। वही गोरेगांव के नेस्को में 1240 बेड का अस्पताल बना दिया है जो ऑक्सीजन से युक्त है। हर बेड पर पंखे हैं। 14 डॉक्टर और  70 नर्स भी उपलब्ध है। कल से मरीजों के प्रवेश की अनुमति भी दे दी गई है। वर्ली में भी, महालक्ष्मी रेस कोर्स में भी 300 से ज्यादा बेड की व्यवस्था की गई है।

राज्य से लगभग आठ लाख से ज्यादा मजदूरों का पलायन हो चुका है। लगभग 4000000 मजदूर यहां काम करते हैं पलायन अब भी जारी है ऐसे में कोरोनावायरस का खतरा टलने के बाद मजदूरों का वापस आना भी उतना ही मुश्किल हो सकता है। 

20 हजार के लगभग चलनेवाली टैक्सी में लगभग 4000 लोग अपने गांव उत्तर प्रदेश, बिहार, छतीसगढ़, झारखंड आदि जा चुके हैं।
60 हजार से अधिक ऑटो चलते हैं जिनमे कई हजार की संख्या में लोग जा चुके है।
कई ओला से जुड़कर काम करनेवाले निजी वाहक भी जा चुके हैं।



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