निर्भया को मिला इंसाफ, चारो आरोपी तिहाड़ जेल में फांसी पर लटकाए गए।
दिल्ली निर्भया बलात्कार मामला जो 2012 में हुआ और निर्मम तरीके से उसके गुप्तांगों में रॉड डाल दिया गया, चलती बस से फेंक दिया गया। चार अपराधी जिन्हें पिछले सात साल से कानूनी दांव पेंच के जरिये वकील ए पी सिंह बचाते आए, आज उन्हें तिहाड़ जेल में तमिलनाडु पोलिस की भारी सुरक्षा के बीच फांसी दे दी गई।
आखिरी वक्त में आधी रात को भी दिल्ली उच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे और अपराधियों को बचाने की कोशिश की। राष्ट्रपति द्वारा याचिका खारिज की गई, वकील सिंह ने इसे भी कोर्ट में चैलेंज किया।
तीन जजों की स्पेशल बेंच, श्री अशोक भूषण, आर भानुमति, जस्टिस बोपन्ना ने अंततः फांसी की सजा कायम रखी।
आज तड़के ५.३० बजे चारो आरोपी बलात्कारियों को (मुकेश सिंह, विनय शर्मा, अक्षय कुमार सिंह, पवन गुप्ता) फांसी पर लटकाया गया ।
निर्भया, 23 वर्षीय पैरामेडिकल विज्ञान की छात्रा थी जिसे दिसंबर 2012 में 6 लोगो ने दरिंदगी की हद पार करते हुए चलती बस में गैंग रेप किया, मारा पीटा गया, लोहे की रॉड तक का प्रयोग हुआ , चलती बस से फेंक दिया गया । इस मामले में पांचवे आरोपी राम सिंह ने खुदकुशी कर ली और छठे आरोपी को नाबालिग होने के नाते बाद में कानून ने छोड़ दिया।
चारों मे से अक्षय सिंह , पवन गुप्ता के वकील सिंह ने मामले को बहुत लंबा खींचा , मानसिक तौर से दोनों को बीमार साबित करना, दया याचिका राष्ट्रपति को देना, पीड़ित निर्भया के भरी अदालत में चारित्रिक हनन करना जैसे कई काम अधिवक्ता सिंह ने किए जिसके लिए पूरे समाज से वे आलोचना के शिकार भी हुए।
सिंह ने कहा था कि यदि उनकी बेटी शादी से पहले अपने बॉयफ्रेंड के साथ घूमती और विवाह से पूर्व संबंध रखती तो वे अपनी बेटी को जिंदा जला देते ।वह यह दिन आने ही न देते। पूरे देश मे माता पिता को यह तरीका अपनाना चाहिए।
वे अपराधियों को लगातार मासूम साबित करने में लगे रहे।
इतना ही नही अंत मे मामले को विदेशी संस्थाओं द्वारा अंतरराष्ट्रीय कोर्ट ऑफ जस्टिस भी ले जाया गया ।
आज रात में भी सिंह ने इस सजा को टालने की पूरी कोशिश की और न्यायालय पहुंच गए थे।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण, आर भानुमति और बोपन्ना ने फांसी की सजा कायम रखी और सिंह की दलीलों को नकार दिया।
यह केस काफी संगीन और हृदय विदारक रहा जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था।
क्या कहा निर्भया की माँ आशा देवी ने-
आशा जी ने यह लड़ाई बड़ी हिम्मत के साथ लड़ी।
उन्होंने मीडिया से बातचीत में बताया कि कैसे हर बार नई अर्जी अदालत में अपराधियों के वकील करते थे, कैसे बलात्कारियो के माता पिता कोर्ट रूम में मुझ पर हँसते थे।
(आशा देवी- निर्भया की मां)
मुझे कितनी शर्मिंदगी, और मानसिक प्रताड़ना मिली यह कहना मुश्किल है।
यह चौथी बार डेथ वारंट जारी किया गया था। मुझे मेरे संविधान पर भरोसा था।इस लड़ाई में उनके सहयोगी उनकी बहन, उनकी वकील और एक अन्य पंकज अग्रवाल रहे जिन्होंने हमेशा हिम्मत दी कि हम यह संघर्ष जरूर जीतेंगे।
आज अगर निर्भया जिंदा होती तो डॉक्टर की मां कहलाती। पूरी रात कोर्ट में गुजर गई। 10 बजे के बाद हाई कोर्ट में सुनवाई हुई उसके बाद २.३० बजे रात को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चली , 3.3०मिनट पर 1 घंटे की सुनवाई के बाद तीनों जजों ने सभी नई दलीलों को खारिज कर दिया और कहा कि किसी भी याचिका में ,किसी भी दलील में कुछ नया नही है। इस डेथ वारंट को अब नही रोक सकते।
तब तक यह असमंजस था कि कही इस बार भी सजा न टल जाए।
घर पर जब टीवी के माध्यम से देखा कि चारो को फांसी दी गई है, तब बेटी की तस्वीर को गले लगाकर मैंने कहा कि बेटा तुझे इंसाफ मिल गया है, आज माँ का धर्म पूरा हुआ है।
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