नवरात्रि आगमन, माता के नौ रूपो की पूजा से पूरा देश हो जाता है भक्तिमय
शारदीय नवरात्रि का आगमन हो चुका है।
जग जननी जय मां!
नवरात्रि के प्रथम दिन माता शैलपुत्री सभी पर अपनी असीम कृपा बनाए रखें।
या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः|
कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया, सब देवताओं को निमंत्रित किया और उनके यज्ञ का भाग भी निर्धारित किया , सिवाय भगवान शिव को छोड़कर।
माता सती जो शिव की अर्धांगिनी हैं और दक्ष की पुत्री भी हैं, ने वहां निमंत्रण न होने के बावजूद जाने की जिद की।शिव के समझने के बावजूद वह अपने परिवार से मिलने के लिए उस यज्ञ आयोजन में जाना चाहती थीं, प्रबल इच्छा को देखकर भगवान ने कहा आप जाएं ,मैं तो नहीं चलूंगा।
सती से सिर्फ सम्मान के साथ गले लगाकर मिलने वाली सिर्फ उनकी मां ही थीं।
सादर भलेही मिली एक माता।
भगिनी मिली बहुत मुस्काता।।
( गोस्वामी कृत रामचरित मानस ,बालकाण्ड )
बाकी सभी बहनों ने उपहास किया, स्वयं दक्ष ने कटु वचन कहे।
सती ने देखा भगवान शिव के लिए कोई आसन नहीं है। दुखी होकर सती ने योग अग्नि प्रकट की और अपना शरीर भस्म कर दिया।
शिव को जानकारी हुई तो वीर भद्र को भेजा और वीर भद्र कई गणों के साथ जाकर यज्ञ स्थल को नष्ट किया, जो सामने पड़ा वह मारा गया।सती के पिता दक्ष का भी सर धड़ से अलग हुआ।
भगवान शिव सती के जले शरीर को लेकर तांडव करने लगे, उनके क्रोध और मोह को शांत करने के लिए भगवान नारायण को सुदर्शन चक्र द्वारा माता सती का शव विच्छेदन करना पड़ा।कुल ३६ जगहों पर माता सती के शव के कई हिस्स गिरे और वहां शक्ति पीठ की स्थापना हो गई।
यही सती फिर हिमालय राज के यहां पार्वती के रूप में जन्मी ,इसलिए शैलपुत्री के नाम से जानी गई हैं। (शैल यानी हिमालय)
कालांतर में भगवान शिव बारात लेकर हिमालयराज के यहां आए और धूम धाम से माता पार्वती यानी शैलपुत्री से विवाह किया।
नवरात्रि की अनंत शुभकामनाएं।
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