महाराष्ट्र में चुनाव आयोग द्वारा शिवसेना नाम और चिन्ह शिंदे समूह को देने के बाद घटनाक्रम तेज/उद्धव हुए आक्रामक, चुनाव आयोग केंद्र सरकार की गुलाम
शुक्रवार को केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा शिवसेना पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह धनुष बाण अब शिंदे समूह के हवाले कर दिया है।
इस फैसले के बाद जहां एक ओर शिंदे समूह में हर्ष का माहौल है, वहीं दूसरी ओर उद्धव ठाकरे समर्थको में निराशा देखने को मिल रही है।
कल शनिवार को उद्धव ठाकरे अपने मातोश्री निवास के बाहर मौजूद कार्यकर्ताओं से शांति बनाए रखने की अपील की। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग अब भाजपा समर्थित केंद्र सरकार के इशारे पर नौकरों की तरह काम कर रहा है।
शिंदे समूह को लगता है कि वह इस तरह हमसे हमारी पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह चुराकर शिवसेना पार्टी को समाप्त कर देंगे यह उनका भ्रम है ।शिवसेना कभी समाप्त नहीं हो सकती। जनता से अपील करते हुए उद्धव ठाकरे ने कहा कि आने वाले चुनाव में वह पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह चुराने वाले लोगों को सबक सिखाएं।
ठाकरे ने अपने विधायको, सांसदो को आगामी मनपा चुनाव के लिए कमर कसने के निर्देश भी दिए। ठाकरे ने कहा कि मनपा चुनाव जल्द ही कभी भी कराए जा सकते हैं।
चुनाव आयोग के फैसले के बाद मुख्यमंत्री शिंदे ने पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के लिए बयान दिया कि उन्होंने २०१९ में बालासाहेब की पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह सत्ता के लिए गिरवी रख दिया था, जिसे शिंदे ने अब छुड़ाया है।
दरअसल बड़ा मुद्दा अब यह है कि चुनाव आयोग द्वारा सिंबल और पार्टी का नाम समूह को दिए जाने के बाद से अब यह सवाल उठने लगा है की पार्टी के नाम पर महाराष्ट्र में मुंबई समेत बहुत सी शाखाएं हैं। पार्टी के कार्यालय हैं, और पार्टी का मुख्यालय जो दादर में शिवाजी पार्क के नजदीक शिवसेना भवन है, और पार्टी के बैंक खातों में मौजूद राशि भी है। यह सभी प्रॉपर्टी, कार्यालय और नकदी शिंदे समूह को मिलनी चाहिए।
खबर यह है कि ठाकरे समूह के पारिवारिक वफादार रहे और पूर्व में उद्धव ठाकरे की सरकार में राज्य कैबिनेट मंत्री रह चुके सुभाष देसाई की संस्था शिवई सेवा ट्रस्ट द्वारा कई शाखा कार्यालय की जगह संचालित है ।इतना ही नहीं पार्टी मुख्यालय दादर का शिवसेना भवन का मालिकाना हक भी इस ट्रस्ट को ही है।
एक नजरिया यह भी है कि शिवाई सेवा ट्रस्ट के हक के चलते ही कदाचित शिंदे समूह यह पहले ही कह चुका है कि उनकी कोई ऐसा इच्छा नहीं है कि पार्टी मुख्यालय शिवसेना भवन पर कब्जा किया जाए।
शिवाई सेवा ट्रस्ट में पूर्व राज्य उद्योग मंत्री सुभाष देसाई के अतिरिक्त अन्य नेता लीलाधर डाके, रविंद्र मिरलेकर, पूर्व मुंबई महापौर विशाखा राउत , दक्षिण मुंबई लोकसभा से सांसद अरविंद सावंत और स्वयं उद्धव ठाकरे की पत्नी रश्मि ठाकरे भी कोर सदस्य हैं।
कुछ बारह पहले पार्टी मुख्यालय का संचालन कर रही इस ट्रस्ट के अंतर्गत पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की कृपा से कुछ शाखाओं को भी दे दिया गया। इसके लिए विभाग प्रमुखों, शाखा प्रमुखों को वैध दस्तावेज शिवाई सेवा ट्रस्ट के पास हस्तांतरित करने की प्रक्रिया के निर्देश भी दिए गए थे।
मुंबई में २२७ नगरसेवको के हिसाब से २२७ शिवसेना शाखाएं हैं, जिनमे से ५०% के करीब शाखाएं शिवाई सेवा ट्रस्ट के अधिकार में आई हैं जबकि अन्य शाखाओं के दस्तावेजों का हस्तांतरण अभी भी लंबित है। यह जानकारी शिंदे समूह के एक वरिष्ठ नेता के द्वारा दी गई है। यह देरी भी इसलिए हुई क्यों कि कुछ शाखाओं के मालिक खुद शाखाप्रमुख ही थे, कुछ के दस्तावेज समुचित नही हैं।
चूंकि शिंदे समूह इसकी जानकारी रखता है इसलिए खुले तौर पर वह शिवसेना भवन को लेने की मांग नही कर रहा है।
शिंदे समूह पूर्व नगरसेवकों, विभागप्रमुखों ,नेताओं को बार बार मिल रहा है और कार्यालयों में उद्धव ठाकरे, आदित्य ठाकरे की फोटो निकालकर एकनाथ शिंदे , स्वर्गीय आनंद दिघे की तस्वीरे लगाने और शिंदे समूह के लिए कार्य करने के लिए कह रहा है।
दूसरी ओर शिंदे समूह की प्रवक्ता शीतल म्हात्रे का कहना है कि उन्हें कार्यालय, मुख्यालय से कोई लेना देना नही है। शिंदे समूह की लड़ाई विचारों की है, हिंदुत्व और बालासाहेब की विचारधाराओं को लेकर चलने की है, और केंद्रीय चुनाव आयोग ने हमे अब पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह दे दिया है।
शिवसेना द्वारा मीडिया के तौर पर दैनिक हिंदी और मराठी सामना अखबार, मार्मिक पत्रिका का प्रकाशन होता है, हालांकि यह किसी राजनीतिक पार्टी के बैनर तले नही है, पर एक दूसरे ट्रस्ट के स्वामित्व में है।
प्रबोधन प्रकाशन नामक संस्था इन दोनो का प्रकाशन करती है जिसमे कोर समिति सदस्य और निदेशक के रूप में ठाकरे परिवार के सदस्य और सुभाष देसाई जैसे नेता हैं।
पार्टी फंड के नाम पर शिवसेना द्वारा प्रस्तुत वित्तीय वर्ष 2020- 21 में हुए ऑडिट के आधार पर पार्टी को डोनेशन के रूप में 13 करोड़, 84 लाख,11 हजार 229 रुपए मिले जिसमे से 7 करोड़ 91 लाख 50 हजार 973 रुपए खर्च किए गए।
चूंकि पार्टी नाम और चिन्ह दोनो अब शिंदे समूह को दिए गए हैं तो फंड भी उन्हे ही मिलने चाहिए। राजनीतिक पार्टियां चुनाव में प्रचार, विकास कार्यों और अन्य पार्टी से संबंधित कार्यों के लिए फंड का इस्तेमाल करती हैं जिसके लिए उनके पास पार्टी के नाम का बैंक खाता होता है जिसमे यह रकम रखी जाती है। अकाउंट पर अधिग्रहण के लिए शिंदे समूह साइनिंग अथॉरिटी के नाम बैंक में चेंज करवाएगा और फंड की पोजिशन मिल जाएगी।
खबर यह भी आ रही है कि उद्धव ठाकरे समूह ने ECI के फैसले के बाद फंड ट्रांसफर भी किए हैं।
उल्लेख कर दें कि सर्वोच्च न्यायालय में अब भी नाम और पार्टी सिंबल को लेकर दोनो समूहों की लड़ाई जारी है।
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