आज है गुरु पुष्य नक्षत्र संयोग- किसी भी कार्य के लिए है उत्तम संयोग।
हिंदू धर्म में त्योहारों और विशेष अवसरों पर शुभ मुहूर्त का विशेष महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि शुभ मुहूर्त में किया जाने वाला कार्य हमेशा सफल होता है।
28 अक्तूबर को शुभ कार्य और खरीदारी के लिए गुरु-पुष्य नक्षत्र का संयोग बनने जा रहा है। ज्योतिष शास्त्र में पुष्य नक्षत्र को बहुत ही अच्छा माना गया है। इस बार धनतेरस और दीपावली के पहले खरीदारी के बहुत ही अच्छा शुभ मुहूर्त का निर्माण होने जा रहा है। यह गुरु-पुष्य नक्षत्र 28 अक्तूबर को पूरे दिन और रात तक रहेगा।
गुरु-पुष्य योग में धर्म, कर्म, मंत्रजाप, अनुष्ठान, मंत्र दीक्षा अनुबंध, व्यापार आदि आरंभ करने के लिए अतिशुभ माना गया है सृष्टि के अन्य शुभ कार्य भी इस नक्षत्र में आरंभ किये जा सकते हैं।
पुष्य नक्षत्र का सबसे ज्यादा महत्व बृहस्पतिवार और रविवार को होता है। बृहस्पतिवार के दिन पुष्य नक्षत्र पड़ने पर गुरु-पुष्य और रविवार को रवि-पुष्य योग बनता है।
इस बार 28 अक्टूबर, गुरुवार को गुरु पुष्य (Guru Pushya 2021) का योग सुबह 09:41 से प्रारंभ होकर दूसरे दिन यानी 29 अक्टूबर, शुक्रवार की सुबह 11:38 तक रहेगा। इसी दिन सर्वार्थसिद्धि योग और रवि योग भी है। इसी दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:42 से दोपहर 12:26 तक रहेगा। विजयी मुहूर्त दोहपर 01:34 से 02:19 तक रहेगा।
गुरु-पुष्य नक्षत्र की खास बातें...
- नक्षत्र ज्योतिष के अनुसार सभी 27 नक्षत्रों में से पुष्य को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। पुष्य सभी अरिष्टों का नाशक है। विवाह को छोड़कर अन्य कोई भी अन्य कार्य आरंभ करना हो तो पुष्य नक्षत्र श्रेष्ठ मुहूर्तों में स एक है। अभिजीत मुहूर्त को नारायण के 'चक्रसुदर्शन' के समान शक्तिशाली बताया गया है फिर भी पुष्य नक्षत्र और इस दिन बनने वाले शुभ मुहूर्त का प्रभाव अन्य मुहूर्तो की तुलना में सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
- पुष्य नक्षत्र का सबसे ज्यादा महत्व बृहस्पतिवार और रविवार को होता है। बृहस्पतिवार के दिन पुष्य नक्षत्र पड़ने पर गुरु-पुष्य और रविवार को रवि-पुष्य योग बनता है।
-बृहस्पति देव और प्रभु राम भी इसी नक्षत्र में पैदा हुए थे। बृहस्पतिं प्रथमं जायमानः तिष्यं नक्षत्रं अभिसं बभूव। नारदपुराण के अनुसार इस नक्षत्र में जन्मा जातक महान कर्म करने वाला, बलवान, कृपालु, धार्मिक, धनी, विविध कलाओं का ज्ञाता, दयालु और सत्यवादी होता है।
- पार्वती विवाह के समय शिव से मिले श्राप के परिणामस्वरुप पाणिग्रहण संस्कार के लिए इस नक्षत्र को वर्जित माना गया है।
- पुष्य नक्षत्र के स्वामी शनिदेव हैं।
- गुरु-पुष्य योग में धर्म, कर्म, मंत्रजाप, अनुष्ठान, मंत्र दीक्षा अनुबंध, व्यापार आदि आरंभ करने के लिए अतिशुभ माना गया है सृष्टि के अन्य शुभ कार्य भी इस नक्षत्र में आरंभ किये जा सकते हैं क्योंकि लक्षदोषं गुरुर्हन्ति की भांति हो ये अपनी उपस्थिति में लाखों दोषों का शमन कर देता है।
- इस नक्षत्र में जन्मी कन्याएं अपने कुल-खानदान का यश चारों दिशाओं में फैलाती हैं और कई महिलाओं को तो महान तपश्विनी की संज्ञा मिली है जैसा की कहा भी गया है कि, देवधर्म धनैर्युक्तः पुत्रयुक्तो विचक्षणः। पुष्ये च जायते लोकः शांतात्मा शुभगः सुखी। अर्थात- जिस कन्या का जन्म पुष्य नक्षत्र में हुआ हो वह शौभाग्य शालिनी, धर्म में रूचि रखने वाली, धन-धान्य एवं पुत्रों से युक्त सौन्दर्य शालिनी तथा पतिव्रता होती है।
( प्रस्तुति: आचार्य अजय मिश्र जी, मुख्य पुजारी- विहिप संचालित सिद्ध पीठ समर्थ हनुमान टेकड़ी, सायन, मुंबई)
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