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भारत मना रहा है आजादी का जश्न, ७५ वें वर्ष की उमंग पर विशेष

१४ अगस्त, २०२१

स्वतंत्रता दिवस पर विशेष- संपादकीय

आजादी के ७५ वर्ष

कितना कुछ बदल गया देश मे इन ७५ वर्षों में..

यदि इतिहास को देखें ,तो आजादी की यज्ञ अग्नि में कितने युवा जो उस वक्त भी ग्रेजुएट थे, अच्छे घर से संबंधित थे पर वह जानते थे...पराधीन सपनेहुँ सुख नाही।
सरदार भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला खान, राजेन्द्र लाहिड़ी, खुदीराम बोस जैसे न जाने कितने युवा क्रांतिकारी उम्र की ३० वीं दहलीज भी नही देख सके, कितनो ने तो २३ से २५ वर्ष की उम्र में फाँसी के फंदे को चूम लिया इसी भारत भूमि के लिए, हमारे लिए ...ताकि हम आजादी का वह सूरज देख सकें जिसकी चाह उनके सीने में आग का गोला बनकर धधक रही थी। राम प्रसाद बिस्मिल, सुभाष चंद्र बोस सरीखे आई सी एस, लाजपत राय, बिपिन पाल, गंगाधर तिलक जैसे वरिष्ठ नेता जिन्होंने कई यातनाएं झेली। सरदार पटेल जैसे अधिवक्ता जिन्होंने बारडोली सत्याग्रह में खुद को झोंक दिया।  पूर्ण स्वराज्य का सपना अनगिनत लोगों ने साकार करने के लिए न जाने कितने आंदोलन किये। 

आजादी की इस लड़ाई में हिंसा और अहिंसा दोनों चले। महात्मा गांधी जैसे बड़े कद के लंदन से पढ़े वकील जो साउथ अफ्रीका में वर्ण भेद को लड़े और भारत मे  वापस आकर कभी नमक सत्याग्रह तो कभी सविनय अवज्ञा ,कभी करो या मरो तो कभी स्वदेशी आंदोलन, असहयोग  तो कभी अंग्रेज़ो भारत छोड़ो  जैसे आंदोलन अंग्रेज़ो को जड़ से उखाड़ने में लगातार लगे रहे।

आजाद जैसे क्रांतिकारी जिन्होंने कितने ही ब्रिटिश दुश्मनों का सफाया किया, भगत सिंह के सबसे करीबी रहे।कसम खा ली कि जिंदा नही पकड़े जाएंगे वह भी उस वक़्त जब वह सिर्फ १५ वर्ष के थे और पहली बार गिरफ्तार हुए थे। पिता का नाम पूछे जाने पर कहा: स्वतंत्रता। कितनी बेते नंगे बदन पर खाई लेकिन आंख में आंसू नही थे।

आजादी की कीमत तो वही बता सकते हैं जिन्हें पता था कि सजा- ए मौत दी गई है, और वह बेचारे २३ वें बसंत के पड़ाव पर गा रहे हैं- सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल मे है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है।

आज भारत विकासशील से विकास की ओर अग्रसर है। हम ७५ वां वर्षगांठ मना रहे हैं।  इन ७५ वर्षों में हमने कितने विकास किये और साथ ही साथ इस विकास में हमारे ही अपनो ने जिन्हें हमने प्रतिनिधित्व दिया, विकास का जिम्मा सौंपा, लोकतांत्रिक पद पर बिठाया, उन लोगों ने सेंध भी लगाई।

विकास और घोटाले साथ साथ चलते रहे।
कई बार अपराधी जब हममें से ही लोग होते हैं, तब इस आजादी पर बड़ा अफसोस होता है।
आए दिन बलात्कार, हत्या, लूट की वारदातें इस देश मे गुलामी ,भय का एहसास दिलाती हैं। यहां कब कोई विशेष धर्म खतरे में आ जाता है, कब मोबिलिनचिंग के नाम पर कौन शिकार हो जाता है। आतंकी घटनाओं का अलग ही कहर है।
धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होने के बावजूद  इतनी असहजता का होना, आधुनिक तकनीकी संसाधनों के होने के साथ ही साथ एक दूसरे के प्रति बढ़ता अविश्वास  एक  राष्ट्र के  विश्वगुरु बनने की राह में बिल्कुल उचित नही है।

जरूरी है कि इस आजादी के पर्व को हम रोज़ जियें, महसूस करें उस दर्द को जो हमारे पूर्वजों ने , क्रांतिकारी भाइयों ने अपने बलिदान के रूप में लिया।  यह रक्त से सनी भारत भूमि है, जहां कितनी माताओं की गोद उजड़ी, कितनो की मांग सूनी हुई,  वह कट गए- पर झुके नहीं। ऐसे स्वाभिमानी और राष्ट्रभक्त अमर शहीदों की ही बदौलत हम आज यह दिवस मना पा रहे हैं।
सरकार ने गुमनाम आजादी के १४६ नायकों सम्मानित करने का फैसला लिया है, बहुत ही हर्ष का विषय है।

कुछ याद उन्हें भी कर लो......
स्वाधीनता दिवस की कोटि कोटि शुभकामनाएं।

जय हिंद, जय भारत।

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