भारत मे 84% भारतीय कमाते है ₹3801 औसतन -सी एम आई ई , लाखों मजदूरों का देश के 5 सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में हो रहा तेजी से पलायन- छत्तीसगढ़ बिहार उत्तर प्रदेश राजस्थान से हैं अधिकतम मजदूर।राज्य और केंद्र सरकार हुई मजदूरों को भरोसा दिलाने में हुई विफल/ घंटों धूप में खड़े होकर बस का इंतजार करते मिले हजारों लोग अहमदाबाद मुंबई हाईवे पर /
महाराष्ट्र से मजदूरों का पलायन रुकने का नाम नहीं ले रहा है।
एक ओर जहां केंद्र सरकार और राज्य सरकार चार बंदी का लड्डू बांटने में व्यस्त हैं ।जहां केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2000000 के आर्थिक राहत का सबसे अंतिम चरण कल पूरा किया। लगातार चार दिनों तक विभिन्न क्षेत्रों उद्यमियों लघु सूक्ष्म और मध्यम कंपनियों कर्मचारियों के लिए सरकार की तरफ से दिए जा रहे राहत राशि को लेकर अपना स्पष्टीकरण दिया। वहीं दूसरी ओर इसी देश में हजारों की संख्या में विभिन्न राज्यों की ओर मुंबई महानगर महाराष्ट्र से लोगों का पलायन करना लगातार जारी रहा है।
कल मुंबई-अहमदाबाद हाईवे पर हजारों की संख्या में लोग बस का इंतजार करते हुए चिलचिलाती धूप में सड़क पर खड़े रहे। इसमें महिलाओं, बच्चों के साथ बहुत से लोग थे ।बात करने पर पता चला कि उनके पास कोई भी आर्थिक संसाधन नहीं है। टेंपो वाले 4500 हजार से ₹5000 मांग रहे हैं ।और उनके पास पैदल चलने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है ।जहां काम करते थे वह कंपनियां बंद हो चुकी है। कंपनी मालिक से उन्हें कोई पैसा नहीं मिला। उनका व्यक्तिगत घर ना होने के नाते मकान मालिकों ने भी किराए वसुलने की जबरदस्ती की कई ,मजदूरों को इसलिए मकान भी खाली करना पड़ा। कई मजदूर जो फैक्ट्री में काम करते थे और वही रहते थे उन्हें वहां से निकाल दिया गया। ऐसे इन मजदूरों के सामने बड़ी समस्या यह आ गई कि नीले आसमान के नीचे रहने के लिए उनके पास छत नहीं बची थी। कईयों के पास सरकार की राशन राहत की सामग्री नहीं पहुंच पाती थी/ कई मजदूरों का कहना है कि हम कोविड-19 के संक्रमण से मरेंगे या नहीं पर नहीं कह सकते ,लेकिन धन के अभाव में रहने की समस्या और तड़पती भूख के कारण वे अपने बच्चों को अपने परिवार को मरता हुआ जरूर देखेंगे ।इसलिए इन विकट परिस्थितियों में हजारों किलोमीटर पैदल चलकर मूल गांव पहुंच जाने में ही समझदारी है।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी यानी सी एम आई पी के मुख्य अर्थशास्त्री कृष्णन कोशिक के सर्वे के अनुसार देश के 27 राज्यों में 84 परसेंट भारती य सिर्फ औसतन ₹3801 प्रति माह कमाते हैं , जबकि 92% लोग ₹5914 की औसतन आय रखते हैं । देश में 10 करोड़ से ज्यादा जॉब जा चुके हैं ।पूरे विश्व में 1.3 अरब लोगों की आमदनी कोविड-19 के चलते लॉक डाउन के कारण प्रभावित हुए है। 80% से ज्यादा भारतीयों की आमदनी में बड़ी गिरावट आई है ।देश में मध्यम और अपर मध्यम वर्गीय परिवार या अमीर परिवार सभी की इस संचार बंदी में अर्थव्यवस्था के चलते कमर टूट गई है ।
हरियाणा बिहार झारखंड जैसे राज्यों में 34% मजदूरों की अवस्था कुछ इस तरह है कि वह उनके बचत पैसे से 1 सप्ताह भी नहीं चल सकते। उन्हें सरकार की ओर से आर्थिक सहयोग मिलने की अत्यंत गंभीर आवश्यकता है । राज्य और केंद्र सरकार मजदूर वर्ग को अपने द्वारा किए जा रहे सहयोग पर भरोसा दिलाने में नाकामयाब दिखाई दे रहे हैं ।मजदूरों में सरकार के प्रति विश्वास टूटता दिखाई दे रहा है। मजदूर हर हाल में सिर्फ पैदल चलकर अपने मूल गांव पहुंचना चाहते हैं कई सिर्फ पैदल चल रहे हैं। कहीं रास्ते में चलते-चलते बेहोश भी हो जा रहे हैं। अफसोस की बात यह है कि इस रास्ते में लोकल लोगों के द्वारा दूध बिस्किट खाने पीने की कुछ चीजें इन मजदूरों को रोक कर दी जाती है ।लेकिन वहां के प्रशासन वहां के अधिकारी , उनके द्वारा कोई मदद नहीं मिलती ।लॉक डाउन खुलने के बाद आने वाले दिनों में बड़ी सच्चाई है, जो मजदूर इतने संघर्ष में अपने मूल गांव पहुंच रहे हैं, क्या वे फिर महाराष्ट्र इतनी आसानी से आ पाएंगे । उद्योग धंधों के खुलने के बाद पूर्ण रूप से काम करने के लिए मजदूरों की संख्या में निश्चित रूप से भारी कमी आने वाली है।
मुंबई में ऑटो और टैक्सी चालकों की संख्या भी बहुत है। 20,000 से ज्यादा टैक्सी ,एक लाख के लगभग ऑटो वाले मुंबई में अपनी आजीविका चलाते हैं। संचार बंदी के साथ ही इनका भी दाना पानी बंद हो गया, लगभग 2 महीने कि इस संचार बंदी में इनकी भी अर्थव्यवस्था टूट चुकी है।
बहुत से ऑटो टैक्सी चालक अपनी गाड़ी में परिवार सहित अपने मूल राज्यों में उत्तर प्रदेश बिहार मध्य प्रदेश में पलायन कर रहे हैं ।उन्हें भी राज्य और केंद्र सरकार के किसी आर्थिक राहत पर कोई भरोसा नहीं है। ये ऐसे लोग हैं जो रोज मुंबई में प्रवासियों को उनके मूल स्थान पर पहुंचा कर उनसे किराया लेकर अपना जीवन यापन करते हैं। इनमें से अधिकांश लोग मुंबई की झोपड़पट्टी में रहते हैं। बहुतों के पास निजी घर ही नहीं ऐसे में रहने के लिए घर का किराया देना भी उनके लिए मुश्किल होता है। कईयों के पास राशन कार्ड नहीं है ;उन्हें सरकार की ओर से मिलने वाली राशन की राहत सामग्री भी नहीं मिल पा रही है |
ऐसा नहीं है कि मुंबई में कोई राहत कार्य नहीं हो रहा / बहुत सी सामाजिक संस्थाएं, समाज सेवक, स्थानीय नेता, विधायक आदि लोग बहुत से जगहों पर अपनी राहत सामग्री पहुंचा रहे हैं /लेकिन इन सब की भी अपनी एक सीमा है ।वे शायद भूख से लाचार अंतिम लोगों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। मुंबई की संख्या भी 2 करोड़ से अधिक है ।अधिकांश जनता निम्न मध्यमवर्गीय है, संचार बंदी के कारण भवन निर्माण, केमिकल कंपनियां, वस्त्र उद्योग ,ऑटोमोबाइल जैसे क्षेत्रों में काम करने वाले यह मजदूर आर्थिक मंदी के चपेट में है ।इन्हें 20 लाख करोड़ की आर्थिक पैकेज से कोई सरोकार नहीं रह गया है ।इन्हें प्रत्यक्ष रूप से किसी तरह का कोई लाभ इससे नहीं हो पाया है।
No comments
Post a Comment